#चंदन एक जड़ी-बूटी है। सुगन्धित, तथा शीतल होने से यह लोगों को आनन्द प्रदान करता है, इसलिए इसे #चन्दन कहते हैं। #चंदन के वृक्ष हरे रंग के और 6 से 9 मीटर ऊंचे होते हैं। इसकी शाखाएं झुकी होती हैं। #चंदन के पेड़ की छाल लाल (rakta chandan), या भूरे, या फिर भूरे-काले रंग की होती है। #चंदन के पत्ते अण्डाकार, मुलायम होते हैं, और पत्ते के आगे वाला भाग नुकीला होता है। #चंदन के फूल भूरे-बैंगनी, या जामुनी रंग होते हैं, जो गंधहीन होते हैं। इसके फल गोलाकार, मांसल होते हैं, जो पकने पर शयामले, या बैंगनी रंग के हो जाते हैं। इसके बीज कठोर, अण्डाकार अथवा गोलाकार होते हैं।
#चंदन के वृक्ष प्रायः 20 वर्ष के बाद ही बड़े होते हैं। पेड़ के भीतर का हिस्सा हल्का पीला रंग का, और सुगंधित होता है। पुराने वृक्षों (chandan tree) की छाल दरार युक्त होती है। #चंदन का वृक्ष 40-60 वर्ष की आयु के बाद उत्तम सुगन्ध वाला हो जाता है। #चंदन के वृक्ष में फूल जून से सितम्बर के बीच होते हैं, और फल नवम्बर से फरवरी तक होते हैं। ऐसी अवस्था में #चंदन पूरी तरह से उपयोग करने लायक हो जाता है। #चंदन के पेड़ की कुछ विशेषताएं ये हैंः-
- उड़ीसा में पैदा होने वाला #चंदन सबसे उत्तम होता है।
- भारत-यूनान (यवन देश) क्षेत्र में में पैदा होने वाला #चंदन गुणवत्ता में थोड़ा कम होता है।
- पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि स्थानों में होने वाला #चंदन सबसे कम गुणवत्ता वाला बताया गया है।
- गंध के हिसाब से उड़ीसा का #चंदन सर्वोत्तम होता है।
आयुर्वेद के अनुसार, #चंदन के पेड़ केवल एक तरह के नहीं होते। देश-विदेश में #चंदन के पेड़ भिन्न-भिन्न तरह के पाये जाते हैं, जो ये हैंः-
1.सबसे अच्छे #चन्दन के लक्षण
जो #चंदन बहुत ही अच्छी गुणवत्ता का होता है, वह दिखने में सफेद रंग का होता है, लेकिन जब उसके टुकड़े करते हैं, तो लाल रंग का होता है। इसे घिसने पर उससे पीला रंग जैसा पदार्थ निकलता है। इसका सुगंध थोड़ा तीखा होता है।
2.#वेट्ट_चन्दन
यह #चंदन बहुत अधिक ठंडा होता है। इससे प्रयोग से जलन, बुखार, उल्टी, कफ आदि बीमारियां ठीक की जा सकती है।
3.#पीतचन्दन
यह #चंदन भी सुगंध में तीखा, और ठंडा होता है। यह कुष्ठ रोग, कफ, बुखार, जलन की परेशानी में फायदेमंद होता है। दाद, वात-विकार, विष, रक्तपित्त आदि में इस्तेमाल किया जाता है।